कहा जाता है, किताबें हमारी सबसे अच्छी दोस्त होती है। जो इन्हे पढ़ता है, किताब उनके जीवन को बेहतर बना देती है। जितने भी लोगों ने दुनिया में नाम कमाया है उन्हें किताबे पढ़ने शौक था। लाइब्रेरी उनकी पसंदीदा जगह रहा करती थीं। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी ने तो अपने घर को ही लाइब्रेरी बना दिया था।
पुस्तकों के इस महत्व को देखते हुए उन्हें पढ़ने के प्रति जागरूकता बढ़ाना एवं छोटे - बड़े सभी में पुस्तकें पढ़ने की रुचि बढ़ाने के उद्देश्य से ' विश्व पुस्तक दिवस ' मनाया जाता है । इसे ' पुस्तक दिवस एवं स्वामित्व दिवस भी कहा जाता है।
23 अप्रैल :
यह दिवस प्रत्येक वर्ष 23 अप्रैल को मनाया जाता है। इंसान के बचपन से स्कूल से आरंभ हुई पढ़ाई जीवन के अंत तक चलती है। लेकिन अब कम्प्यूटर और इंटरनेट के प्रति बढ़ती दिलचस्पी के कारण पुस्तकों से लोगों की दूरी बढ़ती जा रही है। आज के युग में लोग इंटरनेट में फंसते जा रहे हैं। यही कारण है कि लोगों और किताबों के बीच की दूरी को पाटने के लिए यूनेस्को ने '23 अप्रैल' को 'विश्व पुस्तक दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया। यूनेस्को के निर्णय के बाद से पूरे विश्व में इस दिन 'विश्व पुस्तक दिवस' मनाया जाता है।
शुरुआत :
'23 अप्रैल' 1995 को पहली बार 'पुस्तक दिवस' मनाया गया था। कालांतर में यह हर देश में व्यापक होता गया। किताबों का हमारे जीवन में क्या महत्व है, इसके बारे में बताने के लिए 'विश्व पुस्तक दिवस' पर शहर के विभिन्न स्थानों पर सेमिनार आयोजित किये जाते हैं।
विश्व पुस्तक तथा कॉपीराइट दिवस 'इन्हेन्स बुक रीडिंग हैबिट्स' के एकमात्र महत्वपूर्ण उद्देश्य से प्रेरित है। इसके माध्यम से इस प्रवृत्ति को विशेषकर बच्चों में प्रोत्साहित करना है। वर्तमान में 100 देशों में लाखों नागरिक, सैकड़ों स्वयंसेवी संगठन, शैक्षणिक, सार्वजनिक संस्थाएँ, व्यावसायिक समूह तथा निजी व्यवसाय से जुड़े व्यक्ति 'विश्व पुस्तक तथा कॉपीराइट दिवस' मनाते हैं।
पढ़ना बुद्धि के विकास का एकमात्र सरल मार्ग है। इसलिए किताबे पढ़ते रहिए। उन्हें दोस्त बनाते रहीए।
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