केन्द्रीय विद्यालय-गीत
तक्षशिला, नालन्दा का इतिहास लौटकर आएगा।
भारत का ........
शिक्षा-उपवन के नये फूल, संस्कृति सरिता के नये कूल।
हम ज्योति दीप जाग्रत प्रबुद्ध, हट जाओ तम के धूल-शूल ॥
'तमसो मा ज्योतिर्गमय' यह मन्त्र विश्व में छाएगा।
भारत का ........
तन अनेक पर एक प्राण, स्वर अनेक पर एक गान।
हम कण-कण पर छा जाएंगे, बनकर भारत का स्वाभिमान॥
"तत् त्वम् पूषन् अपावृणु" यह छंद ज्योति बरसाएगा।
भारत का ........
हम भविष्य, हम नये चरण, हम आशा की नई किरण।
हम नूतन निर्माण सखे, हम नया जोश, हम नई लगन॥
मिलकर अपना कदम उठेगा, पथ मंजिल बन जायेगा।
भारत का .......
हिमगिरि के सागर तट तक, हम एक प्राण हो जाएँगे॥
समता के गीत गुंजाएँगे, ममता की लोरी गाएँगे।
हिमगिरि से सागर तट तक, हम एक प्राण हो जाएँगे॥
प्रांत-प्रांत का हर बच्चा भारतवासी कहलायेगा।
भारत का ......
वन्दे मातरम् वन्दे मातरम्
सुजलां सुफलां मलयज शीतलाम्।
शस्य श्यामलां मातरम्
वन्दे मातरम्.... ....
शुभ्र ज्योत्स्ना पुलकित यामिनीम् ।
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा।
हम होंगे कामयाब-3 एक दिन-ऽऽ
हो हो मन में है विश्वास पूरा है विश्वास
नैतिकता की सुर में जन-जन मन पावन हो, संयममय जीवन हो-2|
वो है अनगिनत तारों का आधा
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए,
तू जिन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर
अगर कहीं है....
ये वक्त की आवाज़ है मिल के चलो
ये ज़िन्दगी का राज़ है मिल के चलो
चलो भाई, मिल के चलो - 3
आज दिल की रंजिशें मिटा के आ
बन्दर भागा, भालू भागा
हाथी भागा लदरबदर
भागा स्यार, भेड़िया भागा
भागी साही अपने घर
जाने क्या कह दिया शेर ने
भाग चले सब डरे डरे
भाग चला खरगोश ज़ोर से
कहता ऐसे- हाय मरे।
रोज़ सबेरे एक सलोना
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राष्ट्र गीत ( वन्दे मातरम् )
वन्दे मातरम् वन्दे मातरम्
सुजलां सुफलां मलयज शीतलाम्।
शस्य श्यामलां मातरम्
वन्दे मातरम्.... ....
शुभ्र ज्योत्स्ना पुलकित यामिनीम् ।
फुल्ल कुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्
सुखदां वरदां मातरम्
वन्दे मातरम्.
सुखदां वरदां मातरम्
वन्दे मातरम्.
सारे जहाँ से अच्छा
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा।
हम बुलबुले हैं इसकी, ये गुलिस्तां हमारा।
पर्वत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमां का।
पर्वत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमां का।
वो संतरी हमारा, वो पासवाँ हमारा।
सारे ...
गोदी में खेलती है, जिसकी हजारों नदियाँ
सारे ...
गोदी में खेलती है, जिसकी हजारों नदियाँ
गुलशन है जिसके दम से, रश्के जिना हमारा।
सारे ...
मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना।
मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना।
हिन्दी हैं हम, वतन हैं, हिन्दोस्तां हमारा ॥
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हम होंगे कामयाब
हम होंगे कामयाब-3 एक दिन-ऽऽ
हो हो मन में है विश्वास पूरा है विश्वास
हम होंगे कामयाब एक दिन-ऽऽ
होगी शान्ति चारों ओर-3 एक दिन,
होगी शान्ति चारों ओर-3 एक दिन,
हो हो मन में.....
होगी शान्ति....
हम चलेंगे साथ-साथ, डाले हाथों में हाथ
होगी शान्ति....
हम चलेंगे साथ-साथ, डाले हाथों में हाथ
हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन-ऽऽ
हो हो मन में है विश्वास......
हम चलेंगे साथ............
नहीं डर किसी का आज
नहीं डर किसी का आज
नहीं डर किसी का आज
नहीं डर किसी का आज के दिन-55
हो हो मन में है विश्वास.......
नहीं डर किसी..............
हम होंगे....
हम होंगे....
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अणुव्रत-गीत
अपने से अपना अनुशासन, अणुव्रत की परिभाषा ।
वर्ण, जाति या सम्प्रदाय से, मुक्त धर्म की भाषा ।।
छोटे-छोटे संकल्पों से, मानस परिवर्तन हो।
संयममय जीवन हो-2 ||
मैत्री भाव हमारा सबसे, प्रतिदिन बढ़ता जाए।
मैत्री भाव हमारा सबसे, प्रतिदिन बढ़ता जाए।
समता, सह-अस्तित्व, समन्वय, नीति सफलता पाए ।।
शुद्ध-साध्य के लिए नियोजित मात्र शुद्ध साधन हो।
संयममय जीवन हो-2 ||
विद्यार्थी या शिक्षक हो, मज़दूर और व्यापारी ।
विद्यार्थी या शिक्षक हो, मज़दूर और व्यापारी ।
नर हो नारी, बने नीतिमय, जीवनचर्या सारी ।।
कथनी-करनी की समानता में गतिशील चरण हो।
संयममय जीवन हो-2 ||
प्रभु बन करके ही हम प्रभु की, पूजा कर सकते हैं।
प्रभु बन करके ही हम प्रभु की, पूजा कर सकते हैं।
प्रामाणिक बनकर ही संकट, सागर तर सकते हैं।।
आज अहिंसा शौर्य वीर्य संयुक्त जीवन-दर्शन हो।
संयममय जीवन हो-2 ||
सुधरे व्यक्ति-समाज व्यक्ति से, राष्ट्र स्वयं सुधरेगा।
सुधरे व्यक्ति-समाज व्यक्ति से, राष्ट्र स्वयं सुधरेगा।
तुलसी, अणुव्रत सिंह-नाद, सारे जग में पसरेगा।।
आज वीर आचार संहिता में अर्पित तन-मन हो।
संयममय जीवन हो-2 ||
नैतिकता की सुर सरिता में, जन-जन मन पावन हो।
संयममय जीवन हो-2||
नैतिकता की सुर सरिता में जन-जन मन पावन हो,
संयममय जीवन हो-2||
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आधा आकाश नारी है
वो है अनगिनत तारों का आधा
नारी उठाये आधा आकाश, शेष पुरुष संसार
एक साथ मिलते हैं जब इंकलाब की राह पर
आधा आकाश नारी है।
विद्रोह के संगीत में नर है स्वर संगीत
विद्रोह के संगीत में नर है स्वर संगीत
और नारी है ताल।
नर नारी के एक साथ संघर्ष का नाम है तूफान
दोनों के एक संग जीत का वो है सही निशान नारी उठाये
आधा...
एक साथ मिलते हैं जब इंकलाब की राह पर
एक साथ बढ़ते हैं जब इंकलाब की राह पर
हमारा नाम त्याग है ये ज़मीं संग्रामी है हमारा नाम त्याग है।
बुनियाद हिलनी चाहिए
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गांव में,
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गांव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
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जिंदगी की जीत में यकीन कर
तू जिन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर।
सुबह शाम के रंगे हुए गगन को चूमकर
सुबह शाम के रंगे हुए गगन को चूमकर
तू सुन जमीन गा रही है कब से झूम-झूमकर
तू आ मेरा श्रृंगार कर तू आ मुझे हसीन कर
अगर कहीं है......
हजार भेष धर के आई मौत तेरे द्वार पर
हजार भेष धर के आई मौत तेरे द्वार पर
मगर तुझे न छल सकी चली गई वो हारकर
नई सुबह के संग सदा तुझे मिली नई उमर
अगर कहीं है......
अगर कहीं है......
ये गम के और चार दिन सितम के और चार दिन
ये दिन भी जाएंगे गुज़र गुज़र गए हज़ार दिन
कभी तो होगी इस चमन में भी बहार की नज़र
अगर कहीं है....
मिल के चलो
ये ज़िन्दगी का राज़ है मिल के चलो
चलो भाई, मिल के चलो - 3
आज दिल की रंजिशें मिटा के आ
आज भेद-भाव सब भुला के आ
आज़ादी से है प्यार जिन्हें देश से है प्रेम
कदम-कदम से और दिल से दिल मिला के आ
मिल के चलो ..
जैसे सुर से सुर मिले हों राग के
जैसे सुर से सुर मिले हों राग के
जैसे शोले बन के बढ़ें आग के
जिस तरह चिराग से जले चिराग
ऐसे चलें भेद तेरा मेरा त्याग के
मिल के चलो ...
ये भूख क्यूं ये जुल्म का ये ज़ोर क्यूं
ये भूख क्यूं ये जुल्म का ये ज़ोर क्यूं
ये जंग-जंग-जंग का है शोर क्यूं
हर इक नज़र बुझी-बुझी हरेक दिल उदास
बहुत फरेब खाए हम और फरेब क्यूं
मिल के चलो ...
हाय मरे
हाथी भागा लदरबदर
भागा स्यार, भेड़िया भागा
भागी साही अपने घर
जाने क्या कह दिया शेर ने
भाग चले सब डरे डरे
भाग चला खरगोश ज़ोर से
कहता ऐसे- हाय मरे।
कवि : डॉ. श्रीप्रसाद
मोर
रोज़ सबेरे एक सलोना
मोर हमारी छत पर आता।
पिऊ-पिऊ है रटता रहता,
पिऊ-पिऊ है रटता रहता,
क्या जाने वह क्या है कहता।
स्वर में मिसरी घुली हुई है
सूरत उसकी छुई-मुई है। .
सब के मन को खूब लुभाता,
सब के मन को खूब लुभाता,
मोर हमारी छत पर आता |
इधर फुदकता, उधर चहकता,
इधर फुदकता, उधर चहकता,
बड़ा निगोड़ा-कभी न थकता।
छोटी-छोटी आँखें उसकी,
रंग-बिरंगी पाँखें उसकी।
ठुमक-ठुमककर नाच दिखाता,
ठुमक-ठुमककर नाच दिखाता,
मोर हमारी छत पर आता।
कवी : शंभुनाथ पाड़िया 'पुष्कर'
कवी : शंभुनाथ पाड़िया 'पुष्कर'
आम
मुझे बहुत भाते हैं नानी मीठे-मीठे आम,
भर डलिया तू मुझे खिला दे लूँगा तेरा नाम।
बहुत बड़ी है बगिया तेरी छोटा मेरा पेट,
बहुत बड़ी है बगिया तेरी छोटा मेरा पेट,
और पेट से भी छोटा है मेरे मुँह का गेट!
घबरा मत ना खा पाऊँ मैं बगिया भर के आम,
घबरा मत ना खा पाऊँ मैं बगिया भर के आम,
न दे टॉफ़ी न दे बिस्किट दे बस केवल आम!
आम खिलाकर करवा ले तू मुझसे सारे काम,
आम खिलाकर करवा ले तू मुझसे सारे काम,
सिर्फ एक दिन को कर दे बस बगिया मेरे नाम!
कवी : शिवचरण चौहान
कवी : शिवचरण चौहान
बादल हैं या
तड़-तड़ तड़-तड़ बड़म-बड़म,
बादल हैं या एटम बम ।
साथ हवा के दौड़ रहे
साथ हवा के दौड़ रहे
काली-चादर ओड़ रहे
आसमान के फव्वारे
गर्मी में लगते प्यारे
गर्मी में लगते प्यारे
बूंदें गिरती छम-छम-छम ।
हम बच्चे शैतानी से
हम बच्चे शैतानी से
भीग रहे थे पानी से
सब आँगन में घूम-घूम
थिरक-धिरककर झूम-झूम
कड़की बिजलीडर गये हम।
कड़की बिजलीडर गये हम।
बादल हैं या एटमबम।
कवी : अशोक अंजुम
कवी : अशोक अंजुम
मन करता है
मन करता है सूरज बनकर
आसमान में दौड़ लगाऊँ
मन करता है चन्दा बनकर
सब तारों पर अकड़ दिखाऊँ
मन करता है बाबा बनकर
घर में सब पर धौंस जमाऊँ
मन करता है पापा बनकर
मैं भी अपनी मूंछ बढ़ाऊँ
मन करता है तितली बनकर
दूर-दूर उड़ता जाऊँ
मन करता है कोयल बनकर
मीठे-मीठे बोल सुनाऊँ
मन करता है चिड़िया बनकर
चीं ची चूं-चूँ शोर मचाऊँ
मन करता है ची लेकर
पीली-लाल पतंग उड़ाऊँ।
कवी : सुरेन्द्र विक्रम
हमसे सब कहते
नहीं सूर्य से कहता कोई
धूप यहाँ पर मत फैलाओ ।
कोई नहीं चाँद से कहता
उठा चाँदनी को ले जाओ।
कोई नहीं हवा से कहता
ख़बरदार जो अन्दर आई ।
बादल से कहता कब कोई
क्यों जलधार यहाँ बरसाई?
फिर क्यों हमसे भैया कहते
यहाँ न आओ, भागो जाओ।
अम्मा कहती हैं -
'घर भर में खेल खिलौने मत फैलाओ।'
पापा कहते- 'बाहर खेलो,
ख़बरदार जो अन्दर आए।
हम पर ही सबका बस चलता
जो चाहे वह डॉट बताए।
कवी : निरंकार देव सेवक
फर फर फर उड़ी पतंग
फर फर फर फर उड़ी पतंग
वो देखो वो आसमान तक
सर सर सर सर चढ़ी पतंग
चिड़ियों के संग चिड़ियों जैसी
फुर फुर फुर उड़ रही पतंग
आसमान की सैर को निकली
ऊँची ऊँची चढ़ी पतंग
बादल से पहचान है उसकी
उससे मिलने चली पतंग
हवा की गाड़ी पे चढ़ भागी
डोर लगाम से थमते अंग
ढील अभी दे देना उसको
खींचा तो कट गई पतंग
इधर-उधर उड़ मदमाती-सी
कहाँ न जाने गिरी पतंग
कवी : सुधा चौहान
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