सावित्रीबाई फुले : भारत की पहली महिला शिक्षिका


भारत में एक समय ऐसा था जब महिलाओं की स्थिति गुलामों से बेहतर न थी। उन्हें युगों युगों तक अपने अधिकारों से वंचित रखा गया था। बाहर की बात तो दूर रही, घर के चार दिवारी के अंदर भी उन्हें सबसे आखरी स्थान दिया गया था। वे आपने आर्थिक, सामाजिक आदि अधिकारों से वंचित थी। उनके लिए स्वतंत्रता की सीढ़ी समझी जाने वाले पढ़ाई के अधिकार से ही दूर कर दिया गया था।

महिलाओं की ऐसी स्थिति में सुधार कर उन्हें अपने हक़ दिलाने के लिए अनेक आंदोलन चले। बहुत से महान हस्तियों ने इसके लिए प्रयास किए। उनमें सबसे टॉप पर आती है फुले दंपत्ति। सावित्रीबाई फुले और उनके पति महात्मा ज्योतिबा फुले। आज ३ जनवरी सावित्रीबाई फुले जी की जन्म जयंती है। चलिए जानते है उनके बारे में कुछ खास बातें।

१. सावित्रीबाई फुले जी का जन्म ३ जनवरी १८३१ को महाराष्ट्र के नायगांव में हुआ था।

२. ९ साल की आयु में उनका विवाह १२ साल के ज्योतिबा फुले के साथ १८४० में हुआ।

३. जब उनकी शादी हुई तब सावित्रीबाई फुले जी बिलकुल भी पढ़ना - लिखना नहीं जानती थी।

४. उन्होंने अपने पति महात्मा फुले जी से मराठी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में पढ़ना लिखना सीखा।

५. बाद में उन्होंने शिक्षिका (टीचर) बनने का प्रशिक्षण लिया और वे भारत की पहली शिक्षिका (First Lady Teacher) बनी।

६. समाज के बुरे रीति रिवाजों के ख़िलाफ़ जाकर उन्होंने अपने पति के साथ मिलाकर समाज के गरीब बच्चों के लिए स्कूल खोले।

७. उन्होंने महाराष्ट्र के पुणे शहर में १ जनवरी १८४८ में लड़कियों के लिए भारत का पहला (First School for girls) स्कूल खोला। और वे भारत की पहली मुख्याध्यापिका बनी।

भारत की प्रथम शिक्षिका सावित्रीबाई फुले द्वारा पुणे के भिड़ेवाड़ा में स्थापित पहले स्कूल के कक्षा 


८. गरीबों और लड़कियों को पढ़ने कि वजह से समाज के कुछ बुरे लोग अनपर पत्थर और कीचड़ फेंका करते थे। तब भी सावित्रीबाई फुले जी ने अपना पढ़ाने का काम रोका नहीं।

९. उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर कई स्कूल खोले। विधवावों का सहारा बनी। आकाल में ५२ भोजन केंद्र चलाएं। २००० से अधिक निराधार बच्चों कि देखभाल की।

१०. उन्होंने एक विधवा के बच्चे को गोद लिया और उसका पालन - पोषण कर उसे अच्छा डॉक्टर बनाया।

११. समाज के बेतुका मान्यताओं के ख़िलाफ़ जाकर ज्योतिबा फुले जी के मृत्यु के बाद सावित्रीबाई जी ने खुद उन्हें मुखाग्नि दी।

१२. उस समय महाराष्ट्र में फैली प्लेग की बीमारी में अपने डॉक्टर पुत्र के साथ लोगों की सेवा करते हुए उन्हें भी प्लेग होने के कारण १० मार्च १८९७ को उनका देहांत हुआ


सावित्रीबाई फुले जी ने देश का भविष्य संवारने के लिए खुद का जीवन संघर्षों में बिताया। उन्हीं के कार्यों का नतीजा है की आज महिलाएं सम्मान और आज़ादी से पुरुषों के कंधों से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है।

सावित्रीबाई फुले जी का जन्म दिवस महाराष्ट्र में ' बालिका दिवस ' के रूप में मनाया जाता है ।  सावित्रीबाई फुले जी को उनके उनके जन्म जयंती पर शत शत नमन ।

महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले 


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